शनिवार, 9 अक्तूबर 2021

पहला प्रभाव

वो जो आसमान में तारे टिमटिमा रहे हैं
बहुत दूर हैं शायद , सारे टिमटिमा रहे हैं ॥

कल तक जो दिखते ना थे अंदर से
वो जुगनू आज सारे जगमगा रहे हैं ॥

काफ़ी शांत था, शोर बहुत कम था अंदर
ना जाने क्यों मुझे देख आज सारे चिल्ला रहे हैं ॥

मेरी बात को समझते नहीं हैं आखिर तक
जब रोऊँ तो सब गोद में खिला रहे हैं ॥

मज़ा आ रहा है इनकी टेढ़ी-मेढ़ी शक्लें देखकर
मुझे हँसाने के लिए ये जो बना रहे हैं ॥

सारे नाते-रिश्तेदार लगे हैं मेरी सेवा में
मेरा साथ पा कर सब क्यों इतना इतरा रहे है ॥

मैं चैन से सो सकूं खुश रहकर ' आखिर '
इस खातिर सब अपनी नींदें गवां रहे हैं ॥

॥ आखिर ॥

मंगलवार, 31 अगस्त 2021

क्या कहूँ कि आलम यहाँ क्या होगा
सब तो होंगे मगर तू नहीं होगा ॥

ये रियासतें तो यहीं होंगीं मगर
रवायतों का सिलसिला जुदा होगा ॥

हर काम को करते थे, कोई खेल हो जैसे ?
इतना तर्जुबेकार कोई और क्या होगा।।

कैसे सिखाते हैं किसी नौसीखिए को काम ?
ये हुनर हर किसी में भला आम क्या होगा?

आना बड़ा मुश्किल है जब इस नौकरी में तो
बेदाग निकलना भी तो आसान ना होगा ॥

तेरे साथ बिताया हर एक लम्हा संजोया है
क्या करते थे हम साथ तुम्हे याद ही होगा।।

जब भी चलेगा अच्छे ! किसी आदमी का जिक्र
उन महफिलों में जिक्र तेरा नाम भी होगा ॥

॥ आखिर इलाहाबादी ॥

सोमवार, 13 अप्रैल 2020

फिर कोई

फिर कहीं एक ख्वाब ने आवाज़ दी है
फिर कोई चेहरा उकर के आया है। 

फिर कहीं खोया सा रहता हूँ किसी में
फिर कोई आवाज देने आया है।

फिर कहीं ग़ुम है मेरे दिल की धड़कन
फिर कोई एहसास लेकर आया है। 

फिर कहीं आवारगी को भूल बैठा हूँ
फिर कोई दरिया का साहिल बन के आया है। 

फिर कहीं ग़ुम है खुशी दुनिया की रंजिश में
फिर कोई अफसुर्दगी लेकर के आया है। 

फिर ना जाने किसकी खातिर कत्ल हो जाऊँ
कि फिर कोई कातिल निकल कर आया है॥

॥आखिर॥

बुधवार, 4 सितंबर 2019

ज़रा सी दूरियाँ हैं अौर थोड़ी मजबूरियां भी हैं
मगर तु साथ है मेरे मुझे इतना यकीं भी है॥

बुधवार, 25 अप्रैल 2018

कैसा है?

उनसे दूर दिल का हाल कैसा है?
मत पूछ हमसे ये जंजाल कैसा है?

हम जागते-सोते हैं बस तसव्वुर में उनके
ना जाने उनका हुस्न-ओ-जमाल कैसा है?

मेरे हर सवाल का जवाब हैं वो
पर मेरे हर जवाब पर सवाल कैसा है?

उनकी खुशी की खातिर लुट जाऊं मैं आगर
तो मेरे लुटने पर ये बवाल कैसा है?

उनकी ख्वाहिशें मेरी मंजिलें बन गयीं हैं
मेरी ख्वाहिशों का ये इकबाल कैसा है?

मेरे प्रेम की इक़्तिज़ा सिर्फ वो हैं 'आखिर'
मेरे दिल का उन पर इख्तियार ऐसा है!

||आखिर||

शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2017

होता है।

आसमान ज़रा ख्वाहिशों से उपर होता है
मोहब्बत में इंसान कहां ज़मीन पे होता है।।

जब भी सुनता हूं उसे ज़माने की खामोशी में
यूं लगता है मेरा रहनुमा यहीं पर होता है ।।

बहुत कुछ कहता हूं उनसे पर मेरी सुनता कौन है?
उनका ध्यान तो शायद और कहीं पर होता है।।

इकरार ,इजहार, इबादत,दुआ सब करता हूं मैं
मेरा यार जब मेरी सरजमीं पर होता है।।

वो पागल सी है अल्हड़ अपने अंदाज में पर अशकिम
मेरा प्यार बस उसी के लिए होता है ।।

मोहब्बत करती है वो और बताती भी है "आखिर"
की उनका समय भी बस मेरे लिए होता है ।।

।।आखिर।।

मंगलवार, 26 सितंबर 2017

मिलती कहाँ है?

खरीदारी है ईमान की रवादारी मिलती कहाँ है?
ये सियासत है यहाँ वफादारी मिलती कहाँ है?

गलतियाँ हो जाती है लड़कों से सुनते हैं हम मगर
लड़कियों को यहाँ पहरेदारी मिलती कहाँ है?

जब कभी निकलतीं हैं वो सड़कों पर अपने हक की खातिर
लाठियाँ मिलती हैं उन्हें जवाबदारी मिलती कहाँ है?

कैसे किसी रिश्ते पर यकीन करें वो लोग "आखिर"
इतने वहशी माहौल में अब समझदारी मिलती कहाँ है?

।।आखिर।।

पहला प्रभाव

वो जो आसमान में तारे टिमटिमा रहे हैं बहुत दूर हैं शायद , सारे टिमटिमा रहे हैं ॥ कल तक जो दिखते ना थे अंदर से वो जुगनू आज सारे जगमगा रहे हैं ...